विनीत द्विवेदी, ब्यूरो प्रयागराज।
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के अटल सभागार में आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र का विषय- "महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह की काव्य-भाषा, काव्य-शिल्प एवं भाव-भूमि" का आयोजन दिनांक 30अक्टूबर, 2023 को किया गया। कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं अन्य शिष्टाचार के साथ हुआ। अतिथियों का वाचिक स्वागत शशि प्रकाश सिंह, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री नरेंद्र सिंह गौर ने अपने उद्बोधन में महाकवि कुंवर चंद्र प्रकाश जी को आदर्श शिक्षक और साहित्यकार एवं उनकी काव्य रचनाओं को राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत बताया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक, सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से माखनलाल चतुर्वेदी जी रचना कर रहे थे, उसी उद्देश्य को व्यापकता प्रदान करते हुए साहित्य का सृजन महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश जी ने किया है, उनकी भक्ति चेतना एवं राष्ट्रीय चेतना पर विस्तार से समीक्षा करने की आवश्यकता है, जिसके लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा उन पर समीक्षा ग्रंथ, पुस्तकें एवं वृहद स्तर पर शोध कार्य कराये जाने का आश्वासन दिया गया।कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित उ. प्र. राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में, मानविकी विद्या शाखा के निदेशक सत्यपाल तिवारी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह जैसे प्रतिभावान कवियों को साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए व्यापक साहित्येतिहास दृष्टि की आवश्यकता है। कुँवर जी की भाषा गंभीर अर्थों का संवहन करते हुए अनेक प्रतिबिंब, चित्रों एवं लाक्षणिकताओं से समाहित दिखती है। रचनात्मकता का जो भाव रूप यहाँ दिखता है वह किसी भी छायावादी कवि को अतिक्रमण करता हुआ नजर आता है। यह छायावाद के चार स्तंभ हैं तो कुंवर जी उन स्तंभों पर सुंदर विद्वान की भाँति हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से आये आचार्य सत्यपाल शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कुँवर साहब की रचनायें सन् 1922 से लेकर छायावाद व उसके उपरांत अनवरत रूप से सन् 1975 तक लिखीं जाती रही। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उपस्थित हिंदी, आचार्य शिव प्रसाद शुक्ल जी ने विचार व्यक्त किया कि कुँवर साहब हिंदी के प्रचारक और शोधक हैं, कुँवर साहब ने जो नींव डाली थी, उसे और मजबूत करने की आवश्यकता है।
कोटा, राजस्थान से उपस्थित आचार्य हिमानी सिंह ने कुँवर जी की रचना को तत्सम एवं सहज शब्द शिल्पों से युक्त एवं लयात्मकता की अद्भुत मिसाल बताई। सत्र में फिलाडेल्फिया अमेरिका से पधारी डॉ. मीरा सिंह ने महाकाल कुँवर जी के गीतों को बड़ी ही मधुरता एवं भावुकता से प्रस्तुत किया। एबीएस कॉलेज बाराबंकी से पधारे डॉ. आशुतोष वर्मा जी ने अपने उद्बोधन में महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह को छायावादी काव्य धारा में उच्च कोटि का शब्द शिल्पी स्वीकार किया एवं उनकी काव्य-साधना को हिंदी साहित्य की अतुलनीय विरासत माना।सत्र में अन्य अतिथिगण डॉ. कल्पना गवली, आचार्य, हिंदी विभाग एमएस विश्वविद्यालय बडौदा, डॉ. सोनू जेसवानी जी, डॉ. सुरेंद्र बहादुर सिंह चौहान, डॉ बारेलाल जैन डॉ ममता तिवारी एवं डॉ अनिल कुमार विश्वकर्मा आदि साहित्यकार, समीक्षक, शोधार्थी एवं श्रोतागण उपस्थित रहे। कार्यक्रम के समापन पर आयोजन समिति के सदस्य श्री शशि प्रकाश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर छत्रसाल सिंह ने किया।
http://dlvr.it/SyDLQW
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के अटल सभागार में आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र का विषय- "महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह की काव्य-भाषा, काव्य-शिल्प एवं भाव-भूमि" का आयोजन दिनांक 30अक्टूबर, 2023 को किया गया। कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं अन्य शिष्टाचार के साथ हुआ। अतिथियों का वाचिक स्वागत शशि प्रकाश सिंह, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री नरेंद्र सिंह गौर ने अपने उद्बोधन में महाकवि कुंवर चंद्र प्रकाश जी को आदर्श शिक्षक और साहित्यकार एवं उनकी काव्य रचनाओं को राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत बताया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक, सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से माखनलाल चतुर्वेदी जी रचना कर रहे थे, उसी उद्देश्य को व्यापकता प्रदान करते हुए साहित्य का सृजन महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश जी ने किया है, उनकी भक्ति चेतना एवं राष्ट्रीय चेतना पर विस्तार से समीक्षा करने की आवश्यकता है, जिसके लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा उन पर समीक्षा ग्रंथ, पुस्तकें एवं वृहद स्तर पर शोध कार्य कराये जाने का आश्वासन दिया गया।कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित उ. प्र. राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में, मानविकी विद्या शाखा के निदेशक सत्यपाल तिवारी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह जैसे प्रतिभावान कवियों को साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए व्यापक साहित्येतिहास दृष्टि की आवश्यकता है। कुँवर जी की भाषा गंभीर अर्थों का संवहन करते हुए अनेक प्रतिबिंब, चित्रों एवं लाक्षणिकताओं से समाहित दिखती है। रचनात्मकता का जो भाव रूप यहाँ दिखता है वह किसी भी छायावादी कवि को अतिक्रमण करता हुआ नजर आता है। यह छायावाद के चार स्तंभ हैं तो कुंवर जी उन स्तंभों पर सुंदर विद्वान की भाँति हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से आये आचार्य सत्यपाल शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कुँवर साहब की रचनायें सन् 1922 से लेकर छायावाद व उसके उपरांत अनवरत रूप से सन् 1975 तक लिखीं जाती रही। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उपस्थित हिंदी, आचार्य शिव प्रसाद शुक्ल जी ने विचार व्यक्त किया कि कुँवर साहब हिंदी के प्रचारक और शोधक हैं, कुँवर साहब ने जो नींव डाली थी, उसे और मजबूत करने की आवश्यकता है।
कोटा, राजस्थान से उपस्थित आचार्य हिमानी सिंह ने कुँवर जी की रचना को तत्सम एवं सहज शब्द शिल्पों से युक्त एवं लयात्मकता की अद्भुत मिसाल बताई। सत्र में फिलाडेल्फिया अमेरिका से पधारी डॉ. मीरा सिंह ने महाकाल कुँवर जी के गीतों को बड़ी ही मधुरता एवं भावुकता से प्रस्तुत किया। एबीएस कॉलेज बाराबंकी से पधारे डॉ. आशुतोष वर्मा जी ने अपने उद्बोधन में महाकवि कुँवर चंद्र प्रकाश सिंह को छायावादी काव्य धारा में उच्च कोटि का शब्द शिल्पी स्वीकार किया एवं उनकी काव्य-साधना को हिंदी साहित्य की अतुलनीय विरासत माना।सत्र में अन्य अतिथिगण डॉ. कल्पना गवली, आचार्य, हिंदी विभाग एमएस विश्वविद्यालय बडौदा, डॉ. सोनू जेसवानी जी, डॉ. सुरेंद्र बहादुर सिंह चौहान, डॉ बारेलाल जैन डॉ ममता तिवारी एवं डॉ अनिल कुमार विश्वकर्मा आदि साहित्यकार, समीक्षक, शोधार्थी एवं श्रोतागण उपस्थित रहे। कार्यक्रम के समापन पर आयोजन समिति के सदस्य श्री शशि प्रकाश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर छत्रसाल सिंह ने किया।
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